तिलस्मी किले का रहस्य भाग_ 9

कहानी _ *तिलस्मी किले का रहस्य*
भाग_ 9

लेखक_ श्याम कुंवर भारती

सुरभी और प्रताप को वहा काफी बेचैनी महसूस होने लगी थी । उस दरवाजे के पास खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था।फिर भी प्रताप ने सोचा जब दरवाजा खुल ही गया है तो अंदर जाकर देखते हैं क्या ।इतनी तेज दुर्गंध आने का कारण क्या है।
अपने आप को संभालो सुरभी तुम और आओ चलो चलते है अंदर देखते है इतनी तेज गंध क्यों और कहा से आ रही है।शायद इस कमरे से हमे बहार जाने का रास्ता मिल जाए।इतना कहकर प्रताप ने सुरभी का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने लगा ।

जैसे ही दोनो अंदर कदम रखे सुरभी की चीख निकल गई ।कमरे में नर कंकालों का ढेर लगा हुआ था।चारो तरफ हड्डियां पड़ी हुई थी।कंकाल इतने पुराने थे की कोई भी नर कंकाल सलामत नही बचा हुआ था।
प्रताप ने कहा _ शायद इन कंकालों के सड़ने और गलने की वजह से दुर्गंध आ रही थी।पता नही कमरा कितने सालों से बंद पड़ा हुआ था इसलिए हो सकता है ताजी हवा अंदर नहीं आने के कारण दुर्गंध भरी हुई थी।
मुझे यहां से जल्दी ले चलो यह जगह बहुत भयानक और डरावनी है ।सुरभी में डरते हुए कहा। उसका जी अभी भी दुर्गंध से मचल रहा था।

चलो आगे चलकर देखते हैं और रास्ता ढूंढते हैं।यह भी देखते हैं कि इतने नर कंकालों का इस कमरे में होने का राज क्या है।
दोनो हिम्मत कर कमरे में आगे बढ़ने लगे।या तो लोगो को यहां लाकर मारा गया होगा या इनको पहले ही मारकर लाया गया होगा।लेकिन पहले से मारकर इनको इस कमरे में बंद करने का क्या कारण हो सकता है।
इतना बड़ा किला है राजा इनको कही भी दफना या फेंकवा सकता है या जला सकता था लेकिन यहां इतने नर कंकाल होने का क्या मतलब हो सकता है।प्रताप ने कहा ।
चाहे जो भी कारण हो तुम जल्दी चलो यहां से मुझे बहुत डर लग रहा है यहां।सुरभी ने डरते हुए कहा।
ठीक है तुम डरो मत मैं हूं न तुम्हारे साथ ।चलो आगे बढ़ कर देखते है।
दोनो उन नर कंकालों से बचते हुए जैसे ही आगे बढ़े उन्हे ऊपर जाती हुई सीढ़ियां दिखाई दी।दोनो उधर हो बढ़ने लगे।सुरभी ने जैसी ही अपना पहला पैर सीढ़ी पर रखा दाए,बाए ,की दीवाल ,ऊपर की छत और नीचे की की जमीन से बेहद नुकीला हथियार उसकी तरफ बढ़ने लगा।
प्रताप ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर पीछे खींच लिया।वो उसकी छाती से जा लगी ।
सुरभी ने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया _ ये क्या बदतमीजी है ।मुझे अकेले में पाकर छेड़ रहे हो ।उसने गुस्से से कहा।
तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या ।तुमको छेड़ना रहता या जोर जबरजस्ती करना रहता तो कब का किया रहता ।लेकिन अभी तुमको खींच कर तुम्हारी जान बचाया है
तुमको छेड़ने या छूने का मेरा कोई इरादा नहीं है।
जहा जान जोखिम में पड़ी हुई हो किसी को छेड़खानी करने की सूझेगी क्या।
प्रताप ने नाराज होते हुए कहा तुम मेरे पीछे रहो मैं तुम्हे दिखाता हूं की क्यों मैने ऐसा किया था।
प्रताप ने अपना एक पैर धीरे से पहली सीढ़ी पर रखा।सुरभि देख कर हैरान रह गई थी क्यों की जैसा प्रताप ने देखा था उसने भी देखा ।प्रताप ने फुर्ती से अपना पैर सीढ़ी पर से हटा लिया।
 वरना चारो तरफ से भाला से भी ज्यादा नुकीले हथियार उसको चारो तरफ छेद  कर उसकी जान ले सकते थे।
अब समझ में आया मैंने तुमको क्यो पीछे खींचा और  मेरे सीने से टकरा गई थी।
सॉरी यार माफ कर दो मैं समझ नहीं पाई थी तुम्हारा इरादा।

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5 Comments

Mohammed urooj khan

18-Jan-2024 01:10 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Reyaan

18-Jan-2024 10:43 AM

Nice one

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Shnaya

17-Jan-2024 11:18 PM

Nice one

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